बैठा हैं एक शक्स मकान की चोकट पर अपने आस में उनके,
मालूम हैं कम्बख्त दिल को उसके,
इस मिलाद में नहीं मुलाकात उनसे
हर पल उनकी यादो में लम्हा लम्हा गुजारता हैं वो चोकट पर अपने तवज्जू के लिये उनसे,
पर मालूम हैं उसे मुलाकात ना होगी इस मिलाद मैं उनसे,
हर पल नम होने वाली ऑंखे आज सुख गयी हैं इंतजार मैं उनके,
इस कदर बिखरा दिया हैं चाहत ने उनकी की अब हसी भी हसी के लिये तडप रही हैं,
भीतर से तुटा हैं, दिल मायुस हैं, आस नहीं बची अब जिंदगी में मुलाकात की उनसे,
पर आज भी बैठा हैं वो शक्स मकान की चोकट पर अपने मुलाकात की आस में उनके...।
✍️लक्ष्मण चौधरी।
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