मैं एक खुली किताब हूँ,
तुम इस किताब की कवर सी,
ढकता है जो मुझे हर छोर से,
बना के रखता है मेरी ताक़त भी,
उस किताब का कोरा कागज़ हूँ मैं,
और तुम उसपे उकेरिजाने वाली कहानी,
जो पूर्णतः तुम्ही लिखोगी, हमारी जुबानी ।।
पन्नो के बीच का गोंद हो तुम,
जिसके बिना कहाँ मेरा वजूद कोई,
अक्षर भी उलझ जाया करते हैं,
लडखडाते जुबान से, जब नींद में हो कोई,
सो, तुम हो तो सुलझा सा हूँ,
नलके के एक शीतल धार सा हूँ,
ना हो तुम, तो छलकता एक जाम सा हूँ,
अनर्गल, चोट पर हुए दर्द का आभास सा हूँ ।।
आएंगी कई ऐसी परेशानियां,
जिंदगी नही कोई सुलझी दास्तान,
पर साथ मे जरूर खुशियों तक पहुंचाएंगे,
ऐसे हर कहानी को अंजाम तक लाएंगे,
हाँथ बस हमे थामे है रखना,
हमे कुछ और गीत साथ मे है गुनगुनाना,
मैं कुछ तान बनाऊंगा उन गीतों के,
तुम फिर यादों से मुझे, हमारी कहानी सुनाना ।।
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