कुछ लफ्ज़ है बिखरे बिखरे से,
कुछ आंखे याद से बोझल है...
कुछ दर्द दबे है सीने में,
कुछ रूह भी उनसे घायल है...
कुछ ऐसा हो कि तू अा के,
उन ज़ख्मों पर मरहम कर दे...
कुछ ऐसा हो कि जीने की,
एक फिर से नई वजह दे दे...
हो जाए फिर कुछ ऐसा भी,
ये बादल ग़म के सिमट जाए...
हो जाए फिर कुछ ऐसा भी,
सूरज उम्मीदों का निकल आए...
तेरे साथ मैं दामन मेरा भी,
कई ख़ुशियों से फिर भर लूंगा...
कल की ना मुझको फ़िक्र होगी,
एक आज तो तुझ संग जी लूंगा...
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