दिल को कैसे संभाले ,
जब कोई नज़र तेरे चेहरे पर टिकें
लाख जतन हमने किए मगर
बड़ा दर्द ये उठा है ,जमाने की शोख
नजरों से कैसे तुम्हें रोकें ?
जमाने से क्या शिकवा हम करें
हमें तो ये हवाएं भी रास नही आती
चलती है ये शोख हवाएं ,
जो तेरे गेसुओं को उड़ाए
दिल कहता है बस ये हक़
इन हवाओं ने कैसे पाएं ?
मन मेरा ये कहता है
तेरी सुरत , तेरी इबादत का
हक तो बस मेरा हैं ,इस तड़पते दिल को
कैसे हम संभालते हैं ,हम तो तेरे
पायल तेरी चुड़ी से भी जल जाते हैं
तम्मन्ना देख मेरी कितनी मचलती है
ये तो बस इन फिजाओं की नियत से डरती है .....
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