आज फिर वक्त ने रंजिश की है आज फिर तेरा दीद हुआ तु मेरे सामने बैठी है आज फिर दिल कर रहा तेरी ज़ुल्फों से खेलने को आज फिर दिल कर रहा तेरी निगाहें पढ़ने को तेरे रुखसार पे पड़े गुल की तारीफ़ करने को..
याद है वो दिन जब तुम मेरे सामने बैठी थी तुम्हारी मासूम निगाहों ने मेरी निगाहों में चल रही खुराफात ख्वाहिशों को पढ़ लिया था और जो गुस्ताखी हमारी होंठों ने की थी आज फिर दिल कर रहा वो गुस्ताखी करने को।