उमंगे जो दफन कर रखी थी कहीं सीने में,
वो मानो यकायक परत दर परत उभर आईं हैं
जैसे काली अंधियारी रात में,
जुगनूओं की बारात आई हैं…
चाह कर भी अनदेखा न कर पाई
कुछ ने दामन पर मेरे आ कर शोभा बढ़ाई है
असमंजस में हूं इन पलों को देख कर अपनी झोली में
मुझे शुभा सा है,
कही खुशियों ने गलती से मेरे दर पर दस्तक दी है
जी चाहता तो है ऐतबार करना,
पर किस्मत से मैंने हर बार मात खाई है
लाख समभालना चाहा खुद को
पर दिल से इक सादा आई है
खैर छोड़ो इतना भी क्या सोचना आर्ची
किस्मत शायद नई सौगात लेकर आई है
(सादा- आवाज)
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