उलझनें
उलझ जाती हूं बेसुध होकर, अपनी उलझनों में ।
मेरे शब्द खो जाते हैं, और हम खामोश हो जाते हैं।
जितना सोचोऔर उलझते है,सुलझाना चाहो नहीं सुलझते है।
मुस्कान खो जाते हैं ,और हम मायूस हो जाते है।
उलझनों के इस जाल को, कोशिशों से काट न पाते हैं।
सुकून खो जाते हैं और हम हैरान रह जाते है।
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