Rabji...
आज पहली दफा मैंने उसकी आवाज़ सूनी
जब उसने कोई इश्क सूफियाना गुनगुनाया।
सर्द रातों में जैसे धीरे-धीरे ग़ज़लों की महफ़िल सजती है
सावन में जैसे खल-खल नदियां बहती हैं
थोड़ी उस महफ़िल सी थी उसकी आवाज़
थोड़ी उस बहती नदी सी ।
चांद की रोशनी तलें जैसे जुगनू इश्क को रोशन करता है
बेजुबां जैसे इशारों में अपनी बात कहता है
थोड़ी उस जुगनू सी थी वो आवाज़
थोड़ी उन इशारों सी।
खुशियों में जैसे कुछ जज्बात आंसू बनके टपकते हैं
खाली पन्नौं पर जैसे कुछ अनछूए अहसास बिखरते है
थोड़ी उन टपकते आंसूओं सी थी उसकी आवाज़
थोड़ी उन अनछूए अहसासों सी।
आज पहली दफा मैंने उसकी आवाज़ सूनी
जब उसने कोई इश्क सूफियाना गुनगुनाया।
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