लेकिन ये दुनियां और दुनिया में कुछ अपने है,असल में होते नहीं,करा ही देते है एहसास, हमें बिन बाप का होने का।
जो इज़्ज़त जो सम्मान सिर्फ तुम्हारे हमारे साथ होने से होता,नहीं है।
हर कोई समझता है हमें मात्र अनाथ।
तुम गुनहगार हो अपनी संतान के,मेरी मां के।
तुम हो कर भी हो नहीं।
तुम्हें सोचना होगा अपना भयानक अन्त।
तुम कलंक हो पिता के नाम पर, धब्बा हो इस समाज पर, सिर्फ़ लाचार हो और हो बेजार।
मुझे नफ़रत नहीं अपीतु सहानभूति है,
इस दुनियां से जो लंगड़ी और लूली है।
जो प्रेम के सहारे खड़ी होकर किसी को संभाल नहीं सकती।किसी को भी प्रेम नहीं से सकती।
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