बन के एक ख्वाब, वो मेरी ज़िंदगी में आएगी,
न चाह है शहज़ादी की, न 'पापा की परी' की।
बस इतनी सी तमन्ना है, हर रोज़ वो जश्न मनाएगी,
जब अदब-़व-तहजीब मेरे घर तशरीफ़ फरमाएगी।
हर पल वो मेरे नाजुक अहसासों में ही मुस्कुराएगी,
यूंहीं 'बाय' कहकर मुझे, वो ना बेवजह चली जाएगी।।
-