मेरी भी ज़िंदगी की अजीब कहानी थी ... जिससे मैं प्यार करता था... वो मुझसे ही अनजानी थी... पता न ये मेरी भूल थी या मेरी नादानी थी... या फिर वो किसी और की दिवानी थी... हम एक हो जाए इसके लिए के लिए अजय, समी और विशाल के अंदर भी खूब रवानी थी... इसमें एक मेरे दोस्त का अहम रोल था... लगता था जैसे मैं उसके लिए अनमोल था... और फिर मेरे लिए उससे बात करना... ये तो मेरे दोस्त शुभम की मेहरबानी थी... शायद उसे रुकी हुई कस्ती को दरिया पार लगानी थी...
मैं उसे किस तरह कह दू ,की मुझे इश्क़ है तुम से,जानता हूं मैं के वो मेहबूब किसका है, सभी कहते है कि उसको भूलना है आसान लेकिन ,मैं उसे भूल जाऊ इतना दिल मजबूत किसका है......
सारे काम हम खुद करते हैं उनको क्यों तंग करते हम ख्वाबों में सोचते सोचते उनके सग क्या क्या करते जिस राज को उजागर होली के रंग नहीं कर पाते उस राज को जाकर लोगों के बदलते रंग करते 🖋️ सर्वज्ञ त्रिवेदी
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