अगर मरहम लगाने नही है कोई तो जख्म अब तुम भी अकेला छोड़ दो यूँ तन्हां रहना नही है हमको मेरी तन्हाई अब तुम भी अकेला छोड़ दो नहीं है कोई रुमाल देने वाला तो आँसू अब तुम भी अकेला छोड़ दो अगर हो पता मेरी परछाई का तो उसे भी ये खबर भेज दो मैंने अकेले छोड़ने की अपील आज उससे भी की है
क्यों बिरह पथ पर बढ़ रहा...?? अपनों से नाता तोड़ रहा...?? महत्वकंक्षाओं के लिए तू... क्यों अपनी मिट्टी को भूल रहा... क्या करेगा तू धन पाकर... क्या करेगा लाखों जुटाकर...?? लोगों के दिल में अगर तू... जिंदा खुद को न रख सका... तो क्या करेगा तु महल बनाकर... सुन ले हो तो मूर्ख प्राणी.... अंत में तेरे हाथ कुछ ना आएगा... अकेला ही तू आया था ... और अकेला ही तू जाएगा....
मौत के गाड़ी मे जिस दिन सोना होगा उस दिन ना कोई तकिया ना कोई बिछौना होगा साथ होगी दोस्ती कि कुछ यादे और शमशान का एक कोना होगा और वहा लिखा होगा, मंजिल तो तेरी यही थी बस जिंदगी गुजर गई आते आते क्या मिला तुझे इस दुनिया से अपनो ने ही जला दिया जाते जाते
Khud hi akela ldta rha gam dard tklifo se... kuch na maanga tha kbhi tujhse Ae mere rab usko lauta de. Ek khushi to dede.. tu janta h uska pyar mere liye Aisa h.. jaise Kai dino ke bhukhe ki hatheli pr ...Ek waqt ki Roti rakh de
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