फिर आज फूट फूट कर रोना चाहता हूँ,
गले लगा ले 'माँ', गोद में सोना चाहता हूँ,
के बहुत देख लिए ये मेले सब घूम घूम कर,
बस तू लोरी सुना दे, सपनों में खोना चाहता हूँ।
'माँ' नहीं है हिम्मत कि अब जज़्बातों से खेलूँ,
तू रोटी कब बनाएगी, मैं आटे का खिलौना चाहता हूँ।
'माँ' जब कोने में रूठ बैठता, तू हर बार मनाती थी,
तू आए मनाने जहाँ, फिर वो कोना चाहता हूं।
'ग़ज़ब', बड़ा हो गया हूँ आज दुनिया की ख़ातिर,
ज़रा नज़रें मिलाना 'माँ', मैं छोटा होना चाहता हूँ....
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