Adhyay-5
ऐसा भी नहीं की उसका दिल पत्थर का बना था,
ग़म बस यह, जब पता चला वहाँ कोई पहले से रह रहा था ।
लगा शायद मानो एक पल में मैंने सब खो दिया,
जो अभी साथ हुआ भी ना था, उसी ने हाथ छोड़ दिया ।
ख़ुश तो बहुत था ख़ातिर उसकी, जो उसकी ख़ुशी थी कही,
पूछता फिर भी खुदा से हर पल, भला मैं क्यूँ नहीं ।
जवाब तो ना उसने दिया, ना दिया मेरे उस रब ने,
कैसे कहता जो मान लिया था भाभी उसे, मेरे दोस्तों में सब ने ।
लगा कि शायद मेरी दुआओं , मेरी मन्नतों में ही कमी थी,
भरी महफ़िल में जाम लिए बैठने लगे, फिर भी आँख़ो में नमी थी ।
इश्क़ के इस मोड़ पे , कुछ समझ कहाँ आ रहा था,
जज़्बात का समुंदर था, और मैं डुबा जा रहा था ।
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