ज़िंदगी की , मुसीबतों से खेलने को शौक ।
तो , ऐसा रंग चढ़ा मानो ।
हैरां हवा का झोंका भी , देख इसकी रौब ।
हर तरकीब , लगी कोशिशों में जानो ।
कि , फूंक या हवा के झोंके से ।
क्या लौ बचेगा , अंधकार में डूबने से ?
पर , हम तो निखारते ही जा रहे ।
अपनी ही रफ़्तार और धुन में चलते रहे ।
कायल या ज़िद्दी पुकारो हमे ,
ये मानते हो न कि , हैं शिद्दत का खुमार हमे ।
ये भी इत्तेलाह , झोली न भरेगी फूलों से ।
लेकिन , इश्क़ तो कांटों से भी बेइंतहां हमे ।
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