मुझे भी ढूँढ लिया करो कि मैं भी कहीं खो गयी हूँ मिल नहीं पाती हूँ खुद से क्योंकि कहीं गुम हो गई हूँ... गीली मिट्टी सी आई थी दहलीज़ तक तुम्हारी घर के अंदर आते ही ना जाने कितने सांचों में ढल गई हूँ ... ख़्वाब नहीं देखे कभी मैंने चाँद सितारों वाले घर द्वार आँगन बस इन्हीं में उम्र काटती रही हूँ ... किरदार इतने निभाये ज़िंदगी की कहानी में कि इन किरदारों के बीच खुद का वजूद ढूँढ रही हूँ ... जो मिल जाऊं मैं तो तुम मुझे भी बताना खुद से मिलने को मैं अरसे से बेताब हो रही हूँ...