18 FEB 2018 AT 12:57

राह के अंत में, बाहें फैलाए तेरा मुकद्दर खड़ा है
पर मझधार में अटका है तू, तू यार आलसी बड़ा है
समझ तो कि तू ही तेरे अरमानों और तेरे बीच स्वयं अड़ा है
मेहनत कर, आलस त्याग, इस पल दो पल के व्यर्थ आलस में ऎसा भी क्या पड़ा है

- Swasti (Odyssey)