राह के अंत में, बाहें फैलाए तेरा मुकद्दर खड़ा हैपर मझधार में अटका है तू, तू यार आलसी बड़ा हैसमझ तो कि तू ही तेरे अरमानों और तेरे बीच स्वयं अड़ा हैमेहनत कर, आलस त्याग, इस पल दो पल के व्यर्थ आलस में ऎसा भी क्या पड़ा है - Swasti (Odyssey)
राह के अंत में, बाहें फैलाए तेरा मुकद्दर खड़ा हैपर मझधार में अटका है तू, तू यार आलसी बड़ा हैसमझ तो कि तू ही तेरे अरमानों और तेरे बीच स्वयं अड़ा हैमेहनत कर, आलस त्याग, इस पल दो पल के व्यर्थ आलस में ऎसा भी क्या पड़ा है
- Swasti (Odyssey)