शीर्षक - हाँ मैं नारी हूँ
हाँ ,, मैं नारी हूँ
मैं ही शक्ति , मैं ही देवी
मैं ही अग्रजा ,, मैं ही नंदिनी
मैं ही जननी , मैं ही सृष्टि सृजनकारी
हाँ ,, मैं नारी हूँ ।
अहिल्या के रूप में तिरस्कृत भी मैं
मंदिर में मां दुर्गा के रूप में पूजिता भी मैं ,,
उर्मिला की तरह फर्ज भी निभाती मैं
सीता की तरह वनवास का दर्द भी सहती मैं ।
हाँ ,, मैं नारी हूँ ।
सृष्टि धात्री की संज्ञा से विभूषित मैं
पर, हर रोज भ्रूणहत्या की बलि भी चढ़ती मैं ,,
दो कुल का मान बढ़ाती मैं ,,पर दहेज
के लिए नित्य अग्नि में स्वाहा भी होती मैं ।
हाँ ,, मैं नारी हूँ ।
हर रूप,,हर परिस्थिति में जीती हूँ मैं
हर साँचे में ढल जाती हूँ मैं ,,
हर पल टूटती हूँ ,,बिखड़ती भी मैं
फिर भी ,, जीने की जिजीविषा को
अपने अस्तित्व से जुदा नहीं करती मैं ।
हाँ ,, मैं नारी हूँ।
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