sulabh dubey   (sulabh dubey)
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Joined 18 January 2018


Joined 18 January 2018
18 NOV 2020 AT 0:36

अजीज़ हो कोई हमसे ज्यादा , तो कह दो हमें,
खुद को समझा लेंगे कि हम उतने खास नही।।

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6 NOV 2020 AT 13:33

मैंने तुम्हारी दोस्ती को इबादत में मांगी,
खुदा ने दिया भी उसे कुबूल कर।
शायद कुछ कमी रह गयी मेरी इबादत में,
या शायद खुदा ने उसे कुबूला भूलकर।।

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4 NOV 2020 AT 23:41

किसी से खफ़ा हो तो, बता दो उसे ।
कोई नाराजगी हो तो, जता दो उसे ।।
तड़प कर रह न जाये , वो अपने में कहीं।
पता चले उसे भी, कि खफ़ा हो उसे।।

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28 FEB 2019 AT 21:57

इक रास्ता कहीं जाता है ,
न जाने कहां मुड़ जाता है ।
मंजिल पाने की आस में,
राही चलता जाता है।।
गड्ढ़े बहुत हैं इस राह में,
लेकिन कमी नही उसकी चाह में।
गिरता है, संभलता है, लेकिन चलता है,
पर अपने इरादे, वो न बदलता है।
ठानी है जिद, मंजिल पाने की,
हर कोशिश, हर जोर आजमाने की।
बातें बहुत हैं , इस जमानें की,
लेकिन वक्त है, खुद को आजमाने की।।
(For full poem please read the caption below)

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23 APR 2018 AT 14:40

Winner was learner once

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13 APR 2018 AT 1:03

हर कोई जमाने में अपना गम लिए खड़ा है,
मुझे लगता था कि मेरा गम ही सबसे बड़ा है।
जब सुना तुझे ऐ दोस्त, आंखों में एक समंदर समा गया,
एक पल में कई सालों का एक मंजर सा छा गया।

केवल मेरी ही आंखें न भीगी थी, तू भी बहुत रोया था,
कुछ न पाकर भी तूने अपना सब कुछ खोया था।
तूने जो किया उसको पाने के लिए वो तेरा ऐतबार था,
और जो वो करके चली गयी वो तेरा ही प्यार था।

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29 MAR 2018 AT 16:34

तुम्हारी भी खूब थी किस्मत, हमारा भी अच्छा था नसीब;
तुम भी थी मेरे पास, मैं भी था तुम्हारे करीब।
वक़्त ने लिया मोड़, हो गयी तुम मुझसे जुदा;
तुम्हारी किस्मत भी रूठी, खफा हुआ मेरा खुदा।

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13 MAR 2018 AT 22:13

जो मैं तेरा खुशबू , तो तू मेरी गुलाब;
मैं तेरा नशा तो , तू मेरी शबाब।
मैं हूं तेरा सपना , और तू मेरा ख्वाब;
मैं तेरा हर जवाब ,और तू लाजवाब।

मैं हूं इक समंदर , और तू उसकी गहराई;
मैं तेरी काया, और तू मेरी परछाई।
मैं तेरा सपना, और तू मेरी सच्चाई;
मैं तेरी इबादत, और तू मेरी खुदाई।

मैं तेरी नफ़रत, और तू मेरी चाहत;
मैं तेरा दर्द, और तू मेरी राहत।
याद तेरी आई, आँख भर आई;
मैं तेरा हूं अपना, तू हुई पराई।

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26 FEB 2018 AT 23:43

Thukra kr meri jazbaton ko aaj tum chali gayi, khti ho kbhi bhi hmse na milna chahogi
Barsunga ek din puri kaaynaat me barish ki fuhar bankar,bheegna padega tumhe bhi, na bheegna chahogi
Uss barish se bachne ke liye intejaar dhoop ka karogi, lekin unn dhoop ki kirno me bhi mujhe hi paogi
Tadpogi hr ek pal meri baton ko yad kar ke , jb bhi meri yadon se bachna chahogi.
Bahunga jb hawa ka jhonka bankar, uss hawa me apne pallu ko udaogi..
Chhukar jb gujrengi meri aahatein tumhare kaano ko, uss hawa ki tarah tum bhi sihar jaogi..
Gurur nhi hai khud pr lekin itna to yakin hai apni mohabbat pr,
Mere bina tum bhi na jee paogi na mar paogi...

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21 FEB 2018 AT 20:04

मेरी नाराज़गी की बात,
जैसे ही उसके दिल को अमल हुई;
हमारे रिश्तों के जनाजे की तैयारियां मुकम्मल हुई।।।

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