इक रास्ता कहीं जाता है ,
न जाने कहां मुड़ जाता है ।
मंजिल पाने की आस में,
राही चलता जाता है।।
गड्ढ़े बहुत हैं इस राह में,
लेकिन कमी नही उसकी चाह में।
गिरता है, संभलता है, लेकिन चलता है,
पर अपने इरादे, वो न बदलता है।
ठानी है जिद, मंजिल पाने की,
हर कोशिश, हर जोर आजमाने की।
बातें बहुत हैं , इस जमानें की,
लेकिन वक्त है, खुद को आजमाने की।।
(For full poem please read the caption below)
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