शराफ़त की दुनिया किधर है, नज़र नहीं आती हमको
दिल में मोहब्बत,आँखों में शर्म नज़र नहीं आती हमको
काम का हूँ , तो लोग पुकार लेते हैं कभी-कभी मुझको
कोई सिर्फ़ अच्छा है तो, ज़रूरत नज़र नहीं आती हमको
वो जो एक शख़्स है, सबको अपना-अपना सा लगता है
पर ऐसा भी नहीं ,उसकी असलियत नज़र नहीं आती हमको
सिर्फ़ मोहब्बत कर, उसके मुकम्मल होने की शर्त न रख
चाँद की चाँदनी सिर्फ़ एक पर हो, नज़र नहीं आती हमको
फिर उसने कहा , एक बार और आज़माओ हमको प्यार में
मगर प्यार में, आज़माइश की ज़रूरत नज़र नहीं आती हमको
पीछे पड़ा है, ज़िद पर अड़ा है, मिलने को बेक़रार है हमसे
पर ख़ुद में ऐसी कोई ख़ास बात तो, नज़र नहीं आती हमको
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