ShwetaSudheer Mishra   (श्वेता भारद्वाज)
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भीतरी कोलाहलों में डूबती उतराती आत्ममुग्धा है कविता ........
Joined 22 March 2017


भीतरी कोलाहलों में डूबती उतराती आत्ममुग्धा है कविता ........
Joined 22 March 2017
13 FEB 2023 AT 8:00

जिसको दबाने तुम चले
उस धर्म की आवाज हूं
सत्य सनातनी धर्म मेरा
इस धर्म का आगाज़ हूं।
रूधिर वाहिनी सी सही
धर्म के हलधर हैं हम,
नई पौध के है संरक्षक
प्राण-प्रण-समर्पण हैं हम।
भाव भाषा हृदय से हम
निष्कलंकित इतिहास हैं,
प्रेम है बस धर्म अपना
प्रेम ही बस साक्ष्य है।
है भाव की भूख बस
जब ईश को भजते हैं हम,
राम -कृष्ण के प्रेम को
तृप्त आत्मा समझते हैं हम।

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7 OCT 2022 AT 16:17

अल्लाह तेरे बन्दग़ी में बन्दिश़े कैसी
कि इन्सानियत का यूँ कत्लेआम कर डालें।
तड़पता नहीं तू कि रोती है आदमियत
नक़ाब में औरतें ज़िंदगी तमाम कर डालें।
श़ीरीन की मोहब्बतें दम तोड़े है मौंला
कुछ नामुराद़ ज़रूरतों पे हलाल कर डालें ।
तू है मेरे मौला तो इबादतें तू मेरी सुन
इनकी बद़नियती क्यूँ ना जमींदोज़ कर डाले ।

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1 OCT 2022 AT 22:28

आपकी अंतरात्मा चीख रही होती है ,
आपके हृदय से दर्द बाहर आने को बेताब है,
घुटन से दिल भारी
और आंखें जलथल...
कितना अनसुना करोगे
भीतर की सिसकती आवाजों को
अब भी रूक जाओ
अब भी रूक जाओ.....

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20 SEP 2022 AT 15:09

मैं अक्सर सोचतीं हूं कि-
स्वयं के लिए कुछ सोचते रहने का सिलसिला
गर ख़त्म सा होने लगे,
तो मान लिजीये कि आप भीतर से धीरे धीरे
ख़त्म हो रहें हैं;
और सच मानिए ये डरावना है

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31 MAR 2022 AT 8:48

१-
किसी मासूम कोमल सी डाली को
बर्बर होना सिखाना
संभवतः ये सम्मान सूचक तो नहीं है
तो फिर घर में दिया जाने वाला आदर
महत्वहीन कैसे हो सकता है??
समाज में प्रवेश करने वाली प्रथम सीढ़ी ही
तो है...कुटुंब
मेरा प्रथम परिचय प्रेम से हुआ
और दूसरा प्रेम पाने के लिए आदर और समर्पण से
मैंने जाना कि कभी भी आप प्रेम को इन दोनों के बिना हासिल नहीं कर सकते...

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30 MAR 2022 AT 0:17

जिंदगी के साथ बहना
कभी कभी
नुकीले खुरदुरे पत्थरों की
सेज सी महसूस होती है...

जिस पर सोना आपका धर्म और कर्तव्य दोनों ही है
जहां आप लहुलुहान होतें हैं और
चुभन निरन्तर अपनी उपस्थिति जता कर
ये सूचित करती है कि जिंदगी के साथ बहना इतना भी आसान नहीं होता....

श्वेता भारद्वाज
गोरखपुर


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29 MAR 2022 AT 11:35

ये इतिहास बदलने का नया दौर
जहां नस्लों के खूं की जवाबदेही तय है

सुन सको तो सुन लो रूपोश ख़ामसी
चश्मदीद होगे नये दौर का तय है।




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28 MAR 2022 AT 9:33

जब मैं सुबह देर से उठती हूं तो
दिन के सारे काम बोझ की तरह महसूस होतें हैं
नज़रें ऐसी मानों कोई क्राईम कर दिया हो..
भाग भाग कर नाश्ता और लंच मुस्कुराते हुए देना
भले ही आपको चाह कर भी हंसी नहीं आ रही
दो चार उपदेश सुन लेना मानों मेरा कर्तव्य है
आज भी हर रात ये वादा कर के नींद में जाना कि
सुबह जल्दी उठना है...

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12 MAR 2022 AT 1:07

तब सब कुछ बेमानी लगता है
जब एक पल के लिए भी एहसास होता है कि ...
तुम्हारे बिना ये ज़िन्दगी कैसी होगी????
कुछ साथ बिना ज़रूरत के भी ...
जीने के लिए सांस की तरहा होतें हैं

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11 MAR 2022 AT 13:49

यात्रा के बाद घर लौटना ऐसा महसूस होता है
जैसे खुद की आत्मा की तलाश मानो
थोड़ी देर के लिए पूरी हो गई हो ...
क्योंकि जिस सुकून से हम अपने घर
और घर से जुड़ी हर वस्तु को निहारते
हुए पलंग पर सोते हैं...
मानों ईश्वर ने आलिंगन भर लिया हो..
क्योंकि वह शांति और आनंद कभी महसूस ही नहीं किया था सालों से मैंने....
मेरा घर ईश्वर का आंगन सा हो उठा था..
और मुझे किसी और यात्रा पर अब
बिल्कुल भी नहीं जाना था.....

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