shreya G   (श्रेयाG✍️)
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Joined 6 November 2017


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31 JAN 2022 AT 15:48

उलझनों में बंधे हो,
या मुकद्दर ने फसाया हैं।।
यार जो कुछ भी हो ,
जिंदगी ने अब बडी
प्यार से समझा दिया हैं।।— % &

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19 JAN 2022 AT 10:36

हम तो हर रोज पिटवाते हैं ,
जमाने की तानों से।
असल में घाव तो ज्यादा ,
अपने ही विचारों से खातें हैं।।

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19 JAN 2022 AT 9:45

सब्र-ए-इंतजार का जालीम बडा हैं,
इक तरफ नावाकिफ़ हैं दुनिया हमसे,
और बेहाल सिर्फ हम है।

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13 DEC 2021 AT 13:20

स्वाभिमानाला ठेच पोचली की,
माणुस एकतर 'हारतो ' अथवा 'जिंकतो '...

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11 DEC 2021 AT 21:58

रंगांनाही कदाचित दुःख
नक्कीच होत असावं...
माझ्याच छटांमुळं नाहक
भेदभावाच्या दरीत ,
जणु काही मीच फसावं...

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9 DEC 2021 AT 22:30

हसण्यातली खोचकता लक्षात आली की,
माणसातल्या माणुसकीची सखोलता दिसून येते...

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30 NOV 2021 AT 16:50

अगदी आकाश पाताळ एक करून,
मनाला निबरघट्ट दगड बनवुन
तू लढशील...
तेंव्हा जागेपणात पाहिलेली
स्वप्नं रात्रीची झोप नक्कीच उडवतील...
लढत रहा...जोमाने लढत रहा...
नडुन बसलेले सारे मार्ग तुझ्या
आगमनास्तव गालिचे अंथरतील...

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29 NOV 2021 AT 22:37

ख्वाहिशें तो बहुत थी...
कुछ हमने...
तो कुछ मुकद्दरने...
पुरी नहीं होने दी।

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27 NOV 2021 AT 10:24

आयुष्याचं बदगं आडोशाला
निपचित पडलं होतं...
आपसुकच नियतीनं हुकुमाचं
पान काढलं होतं...
जबाबदारी नावाचं एक कोडं
डावात भलतंच रंगलं होतं...

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21 NOV 2021 AT 12:36

सारे जहाँ से न्यारी थी,
वो लडकी सावली सी जरूर थी
पर मेरे हर एक अरमान में,
खिली हुई गुलाब की कली थी।।

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