लहू न मिला खुद के लहू से, मैं खुद को खुद का नहीं, गैर मानता हूँ
रहने दे तेरी पलकों के साये में, मैं कौन सा तुझसे बैर मानता हूं!
मुसलसल वक़्त ही नहीं था मेरे पास, अब हर वक़्त यही वक़्त सुनाता हूँ
जाने दो उसे, चला गया है वो, पर उसने कहा था, अभी आता हूँ!
छाले पांव में थे, इश्क़ दिल मे था, इनका चलता है ये नजर नहीं आये
मैं क्या सवाल करूँ 'हुजूर' तुमसे, सब ठीक है, अच्छा जाता हूँ!
इतना भी फिक्र नहीं अब मुझको, कि हाल-ए-दिल जान सकूँ खुदका
मुझसे कोई क्या दिल लगाएगा, शतरंज के खेल में मैं हार जाता हूँ!
कोई गिरे यहां तो कोई उठ जाए, इतना भला कोई कैसे गिर जाए
बुलंदियों तक जाने का मन है, बस रास्ता देखता हूँ और लौट जाता हूँ!
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