Shashiprakash Saini   (Kavi Shashi)
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Joined 2 January 2017


Joined 2 January 2017
31 JAN 2022 AT 20:57

सपनों और अपनों के बीच हैं फँसे हुए
जिम्मेदारियों के सारे पेंच हैं कसे हुए
जो भी चीज़ चाही वो कद्दूकस हो गई
आग पर सिकती रही बेबस हो गई
उसने ही दी है कलम वो ही सजा दे रहा है
सपनों का सैंडविच बना वो मजा ले रहा है — % &

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28 JAN 2022 AT 22:26

दिमाग पर नफ़रत चढ़े
उससे कहीं अच्छा
दिमाग पर नशा चढ़े

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26 JAN 2022 AT 1:16

वक़्त धीरे धीरे हाथ से फिसलने लगा है
अब सपनों से ज्यादा जरूरी भी कुछ लगने लगा है
आखिर इस दुनिया ने मुझे क्या दिया है
जिम्मेदारियों ने समझौता करना सीखा दिया है

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25 JAN 2022 AT 20:32

इक हाथ में कॉफी हो
बस इतना ही काफी नहीं
दूसरे हाथ में
तेरा हाथ होना चाहिए

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24 JAN 2022 AT 2:37

गिले बालों को वो ऐसे सुखाती रही
हवाएं आँगन में ठहरी शर्माती रही

धूप बूँदों से टकराई सातों रंग खुल गए
हर शरारत पर अपने वो मुस्कराती रही

उस तौलिये की किस्मत भी क्या खूब है
खुद भीग कर भी दिलों को जलाती रही

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23 JAN 2022 AT 23:38

इक मुस्कान पर
उसने हमें खरीद लिया
अब दिल उसकी जी हुजूरी करे
बिन दिहाड़ी मजदूरी करे

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23 JAN 2022 AT 2:53

ज़िन्दगी! ज़िन्दगी है नफा नुकसान थोड़ी है
ये धड़कने हैं तराजू नहीं दिल दुकान थोड़ी है

साथ रहने को दिल में रहना कहाँ जरूरी है?
हम इक तरफा रखेंगे प्यार एहसान थोड़ी है

वो मिले ना मिले न सही दिल में वो ही रहेगी
ये ज़िन्दगी है मेरी किराये का मकान थोड़ी है

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23 JAN 2022 AT 2:20

जिसे चाहा उसे लिखते रहे
जिसे पाया उसे लिख न सके
हिसाबों में गलत किताबों में सही
दिल की दुनिया बस ख्वाबों में सही

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20 JAN 2022 AT 18:48

मैं वर्तमान का उपासक हूँ
और वर्तमान इस समय रूठा हुआ है
उसे मनाना होगा

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23 OCT 2017 AT 14:50

कभी चेत के कबूतरों सी
शांत है कविता
कभी गोदौलिया का
शोर है कविता

कभी आसमान की आँखें बन
पतंगों में नजर आती है
कभी लंका से अस्सी होते हुए
घाटों से गुजरती जाती है
कभी गलियों में रहती है
बंगाली टोला से ठठहरी तक
कभी किसी नवजात का
कृत्य है कविता
कभी मणिकर्णिका का
अंतिम सत्य है कविता

एक कविता है मेरे अंदर
जो बनारस सी दिखती है
जिसे मैं लिख नहीं पाता
पर हर रोज जीता हूँ

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