रंग, घोंसले, फल, फूल सब किरायेदार
एक एक कर सब साथ छोड़ गये
अब सिर्फ़ स्मृतियाँ झूलती हैं उस बूढ़े पेड़ से
जो बाँहें पसारे आज भी रोज़ की तरह
कड़कती धूप में ख़ुद सिककर
आते जाते हर जाने अनजाने को
छाँव देता है, प्यार देता है, आशीर्वाद देता है
फिर चाहे कोई उसे नमस्कार करे या उसका तिरस्कार
- सीमा संदीप तिवारी -
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