16 JUL 2018 AT 13:32

अबकी बार बारिष कुछ ऐसी हो,
की तुझे भीगते देखता रहूँ और क़यामत हो,
फिर चाहे ये दुनिया हो या बंजर हो,
शब्दों में क़ैद कर लूं मैं हर उस मंजर को,
जो बन पड़े बो तेरी मेरी पाक मोहब्बत हो।।

इस क़यामत में मेरे लिखे पन्ने राख हो जाएंगे
पर मेरे शब्द इन हवाओं में अमर रह जाएंगे
इस दुनिया मे यूं ही तुम्हे अमर कर जाएंगे
की कभी तो कुछ ऐसा लिख जाएंगे।।

मेरी चाहतों का अब कोई मुक़ाम हो न हो
ज़रूरी तो नही की हर दुआ मुक्कमल हो
पर ऐ खुदा , बस इतना रहम-ओ-करम हो
की आखरी साँस भी उसी के इंतज़ार में हो।।

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