Sanjiv Kumar  
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Joined 16 December 2017


Joined 16 December 2017
15 DEC 2021 AT 21:22

जिंदगी के तहख़ाने में दफन,
इक तस्वीर दिखाना चाहता हूं।
आंखे होंगी रौशन या गमजदा....
ये आप पे छोड़ जाना चाहता हूं।

फिर जो हर्फ - ओ - लब्ज़ निकले तमाम लवो से,
सब पिरो के एक गीत गुनगुनाना चाहता हूं।
गीत में हो बसंत या कफ़न,
आपकी अनुभावों की जीमेंदारी चाहता हूं।

जिंदगी के तहख़ाने में दफन,
हां मैं एक तस्वीर दिखाना चाहता हूं।


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22 DEC 2020 AT 1:18

तुम 'शीतल' सरल सी लड़की हो,
हर हर्फ-ओ-लब्ज वर्फ़ का बनाऊंगा...
हर नज़्म भेजूंगा दुआ पहनाऊंगा...

यूं शिकन ना ला परेशां ना हो,
मुझे खबर है कि,.....
ये आंखे सनम चांदनी शबनम की आदि हैं,
मै अमावश अंधेरों में घुलमिल जाऊंगा..
मै अमावश अंधेरों में घुलमिल जाऊंगा।

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18 DEC 2020 AT 12:03

चढ़ा अपनी आस्तिं,
तू धर्म-धर्म की लांघ आस्तां,
तू निकाल कोई ऐसा रास्ता ।
की दिलो में रहे इसी से वास्ता;
"हिंदोस्तां मेरी जान
जान मेरी तू हिंदोस्तां"।।

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7 NOV 2020 AT 17:46

ममता की आंचल का वो कोना

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1 NOV 2020 AT 13:38

जिसकी जैसी जरूरत खेली बिल्कुल वैसी ही पारी
क्या इसी लिए रचा उसको प्रकृती ने
हो फूल कभी,कभी सौंदर्य मोहनी हो प्यारी!
जननी रमनी कामनी और नया ये निर्भया
जाने क्या क्या नाम मिला इस दुनिया में
ओ धरा धैर्य,ओ मां काली शक्ति की चिंगारी

सब राम अंश यहां ,थे सब कृष्ण वंस जहां
पर चित चीरहरण पे तेरे भेड़ों की भीड़ बड़ी थी भारी
आज जागा ना उनमें मर्यादा पुरुषोत्तम
ना ही दुहसासन को मर्यादित करने की वो कृष्ण तैयारी
माथे पे चंदन टीका ढोंग जरा भी पड़ा ना फीका
ओ नारी,आज सम्मान में तेरे बने थे सभी पूजारी

है समय विकट है काल निकट
अब ना कोई सीता हरण होगा
तलवार उठा तू हर हथियार उठा
काट काट के रूंड अधर्मी का
तू अब बन रणचंडी अब रण होगा




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7 OCT 2020 AT 0:20

इन खुशनसीब खिड़कियों से जो बिखेरती दो चन्द्र कपोल चांदनी

ये पंखुड़ी गुलाब सी अधर अधीर दो
हवा में प्यास घोलती मनमोहती कुमोदनी

दो नैन बेचैन चहल चंचल से जो
इन्हीं से है शहर में तेरे शीतल सरल सी रोशनी

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21 AUG 2020 AT 18:56

एक खिड़की है...
जिससे दिन में भी चांद निकलता है...
तुम्हे यकीं नहीं तो चल आ मेरे साथ...

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14 AUG 2020 AT 12:36

अगर ईश्वर जैसा कुछ है और अगर स्त्री किसी ईश्वर के समतुल्य हो सकतीं हैं तो वो ब्रह्मा है....वो जीवन बना सकतीं हैं.. खुद का कुछ हिस्सा खर्च कर के भी।.. सो प्रकृति के भी ज्यादा करीब हैं पुरषों की तुलना में......

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24 JUL 2020 AT 5:57

ऐ खुदा...
तू चाहे अपनी रहमतों में मुझे दे ना पनाह...
पर अगली बार तू मुझे जब भी बना..
वो जिसे चाहती है उसके जैसा ही बना.

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30 JUN 2020 AT 23:07

धधक धधक नफ़रत की ज्वाला भड़की
मार मार के अपनों के लाश गिराएंगे
फिर धर्म धर्म के कौए आएंगे,
लाशें नोच नोच के खाएंगे।

दो आंखें सच्ची थीं सच देखी थी,
...फिर खोफजदा थीं लुच्ची थीं!
अब तो मान अपमान पे सब मौन यहां,
शहर में है अब किसका कौन यहां...

राम अंश हैं कृष्ण बंश हैं..!
पर चित चीरहरण पे शर्मसार नहीं,
वो कोदंड का टंकार नहीं,
निडर निर्भीक सुदर्शन की ललकार नहीं..

फिर तो वहीं कौए आएंगे,
मोर बन सुंदर नाच दिखाएंगे,
धर्म धर्म चिलाएंगे ,
हमारी लाशों को नोच नोच खा जाएंगे!!



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