RISHABH VISHAL DWIVEDI   (RISHABH VISHAL DWIVEDI)
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Joined 19 December 2017


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Joined 19 December 2017
25 FEB 2023 AT 21:48

देर रात को भटकते भटकते घर हम गए
मसलन जो मुमकिन न था, कर हम गए।
मैं होश में था, इश्क फिजूल है पता था
मरहम इश्क को समझकर मर हम गए।।

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5 DEC 2022 AT 22:25

काश अगर इतना होता की प्यार चाहिए
और कंबख्त थोड़ा नहीं बेशुमार चाहिए।
मोहब्बत करनी भी है उसको सच्ची वाली
उसे आशिक़ भी मगर अपने हजार चाहिए।।

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29 NOV 2022 AT 23:04

कभी पूरा न हुआ एक ऐसा ख्वाब हूं।
ज्यादा तो नही मगर कितना खराब हूं।।
कांटों में मैंने पूरी जिंदगी निकाल दी ।
किसी को पता न चला मैं भी गुलाब हूं।।

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28 NOV 2022 AT 11:52

मेरी जिंदगी में मुश्किलें बहुत हैं
तुम आकर इसे संवारोगी क्या।
पानी का पूरा दरिया हो तुम
प्यासे को प्यासा मारोगी क्या।।

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28 NOV 2022 AT 0:52

In the Dark A hope of Light
Missed by world A Sun so Bright
Surrounded by foes In and Out
You give us hope to stand and fight.

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22 NOV 2022 AT 12:06

The sun shines more brighter when he knows someone is shining more than the sun.
Winter has come and I hope we all shine so bright that the Sun give us its full energy by shining the most.

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18 NOV 2022 AT 23:45

जुर्म ज़माने ने देखो फिर कैसा ये भरपूर किया
इश्क़ भुलाने को देखो उनको बस मजबूर किया ।
दोनों जैसे सेहम गए जुर्म सितम बेदस्तूर किया
ना बात बनी जब बातों से तो मारा पीटा दूर किया ।।

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5 NOV 2022 AT 11:12

मैं किसको न समझूं और मैं किससे दूरियां बनाऊं
किससे बातें करूं और किससे हाथ मिलाऊं।
हर एक शक्स एक किरदार चाहता है कहानी में मेरी
मैं किससे मोहब्बत करूं और किसको भूल जाऊं।।

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4 NOV 2022 AT 12:16

तू एक वक्त मेरी आदतों में शुमार था
मुझे तो तुझसे इश्क़ का बुखार था ।
नही पता था उस वक्त इश्क़ का नतीजा
ये जो इश्क़ था प्यार था सब बेकार था।।

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9 SEP 2022 AT 19:06

भटकते भटकते पूछते तेरे घर का पता
किसी दिन तेरे घर एक शाम आऊं।

खाली बैठा हूं इस कदर क्या बताऊं
कमबख्त किसी के तो काम आऊं ।।

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