Prince Raj Mathur  
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A more Listener than a speaker
Google for "Prince Raj Mathur"
Joined 20 November 2017


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11 JAN 2022 AT 9:33

कभी कुछ लिखने के लिए,
उससे दिल लगाना पड़ता है।

कभी लिख दो सीधा,
कभी गोल घुमाना पड़ता है।

कभी लिख दो गेहरा,
कभी लिख कर मिटाना पड़ता है।

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7 APR 2021 AT 0:53

कुछ मन नहीं था, कुछ हो गया।
कुछ मन नहीं था, कुछ हो गया।

जुबां भरी थी लफ्जों से,
कुछ कहते-कहते खो गया।

बोझ धरे इन कांधों पे,
मैं सहते-सहते ढो गया।

कुछ चुबा ज़ेहन में ज़ोर से,
मैं रहते-रहते रो गया।

कुछ मन नहीं था, कुछ हो गया।
कुछ मन नहीं था, कुछ हो गया।

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21 DEC 2020 AT 0:31

ये हसीन शाम को ढलना था,
सो ढलती गई।
बाद जाने के आपके भी,
बात आपकी चलती रही।

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11 NOV 2020 AT 9:26

Words are for inspiration.
Decisions are for changes.

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12 DEC 2019 AT 22:06

जब दर्द के दो पल,
हम बयां करने बैठे।
क्या बताएं जान,
तुझसे ही शुरुआत कर बैठे।

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7 JUL 2019 AT 23:50

चेहरा बता रहा था कि मरा है भूक से।
सब लोगों ने कहा, कुछ खा के मर गया।

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15 DEC 2018 AT 10:41

मेरे को हर मंजिल छोटी लगती रहे...
बस यूं ही मां की दुआ असर करती रहे...

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14 DEC 2018 AT 14:08

कब आते हो ?
आकर चले जाते हो l

खबर नहीं देते...
आकर लौट जाते हो l

घर तक आते हो हमारे l
हम तक भी आ जाया करो l

इतने नजदीक आकर,
तुम क्यूं लौट जाते हो..?

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26 NOV 2018 AT 3:47

राज के हमराज़ को इक राज़ तक ही रेहने दो।
चीख भरी है खामोशी में, राज को चुप ही रेहने दो।

मज़ा बहुत आता है मुझको, इस खामोशी के दर्द में,
इतनी जल्दी क्या है अभी, थोड़ा और मज़ा सेहने दो।

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26 NOV 2018 AT 3:09

रास्ते मंजिलों के, खुद-ब-खुद मिल जाते!
जो कठिनाइयों से लड़कर, हंसकर तुम चल जाते!

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