माँ
तेरी कोख मे पला , तेरे आन्चल मे झूला हु माँ ,
तेरी उन्गली पकड़ कर चला ,तुझसे ही तो बोलना सिखा हु माँ ,
अपने आन्चल मे छिपा कर धुप से बचाती थी, नजर ना लगे इसलिए काजल लगाति थी,अब आन्चल मे क्यो नही छुपाति हो, काजल क्यो नही लगाती हो माँ
बचपन मे जब डांटती थी तो अछा नही लगता था, अब मुझे
डांटती क्यो नही हो माँ
तेरी गोद मे सर रख के सोने का सुकु ही अलग था,अब मुझे गोद मे क्यो नही सुलाती हो माँ
बडा होगया तो क्या हुआ, अभी भी जब अकेला होता हु तो तुझे याद करके आंख भर आती हे माँ
तु हे मेरे पास तो लगता हे, जैसे ये घर भरा भरा हे,
तु जाती हे कही तो ,लगता हे जैसे सुना सुना हे आसियाना
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