बादलों से झाँकता चाँद। रोशनी रास्ते पे डालता है। देखता है किसी मुसाफ़िर को। पेड़ रास्ता ताकते हैं। किसी के आने के इंतज़ार में। टहनियां टूटकर गिर जाती हैं। हवाएँ सर्द होने लगी हैं। कोई मुसाफ़िर आने वाला है। पत्तियाँ राह को ढक देती हैं। इस उम्मीद में की कोई रुक जाए। वो सर्द रात में टिमटिमाता हुआ लैंप पोस्ट। हल्की रोशनी करता है और बुझ जाता है। मानो किसी को आवाज़ दे रहा हो। वो बेन्च जो सदियों से खाली पड़ी है। ताक उठती है किसी को आता देख। वो पंछी अब चहचहाते नहीं हैं। वो पार्क अब सूना पड़ा है। वो रास्ता जिसपर बच्चे खेला करते थे। अब वीरान है।