Prateek MainaVi   (प्रतीक मैनावि)
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Joined 24 August 2017


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17 MAR AT 23:14

समय जैसी°चाल चलता है।
बेमिसाल तो नहीं°पर कमाल करता है।।
जब देखो तब°बवाल करता है।
थोड़ा सनकी तो है°पर पागल नहीं है।
जो भी गलत है°उस पर सवाल करता है।।

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15 MAR AT 20:57

झूठी हमदर्दियाँ°रखते है लोग।
कहते तो है°साथ हूँ तेरे।
पर मरने के लिए°छोड़ देते है लोग।।
और जिन्दगी की लड़ाईयाँ°अकेले लड़ रहा हूँ कब से।
पर खुशी की°शाम में।
साथ बैठे थे मेरे°बहुत लोग।।

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11 MAR AT 19:53

लफ़्ज़ों में कैसे°लिखूँ तुम्हें।
पूरी किताब को एक पन्ने पर उतारना°आसान थोड़े है।।
मेरे दिल में तुम हो°और तुम ही रहोगी।
हर वक्त कोई नया आ जाए°किराए का मकान थोड़े है।।
और कुछ सितारें तोड़ लिए है मैंने°तेरे खातिर।
सब सितारों को नीचे ले आऊँ°मेरे अकेले का आसमान थोड़े है।।

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11 MAR AT 8:45

तुझे क्या लिखूँ°ए-जिन्दगी।
कभी तू°माँ के हाथ-सी नरम है।
तो कभी°पापा की डाँट-सी कठोर।।
कभी तू बन जाती है°रातों के ख्वाब-सी हल्की।
तो कभी हो जाती है°स्कूल के बस्ते-सी बोझिल।।

।।तू ही बता।।
तुझे क्या लिखूँ°ए-जिन्दगी।

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5 MAR AT 21:12

तेरे दिल के मकां में।
एक बिछौना मेरा भी बिछा दे।।
इन तन्हाइयों की ठण्ड में।
मुझे नींद नहीं आती है।।

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30 JAN AT 12:47

रातों से°यारी रखते है।
हसरतें है बहुत°पर जेबों में खुद्दारी रखते है।।
पिया सिर्फ पानी है°पर चेहरे पर खुमारी रखते है।
और बोलने को है बहुत कुछ°पर मिजाज अखबारी रखते है।।

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30 JAN AT 11:34

कल तेरी यादों का°श्मशान देख आया हूँ।
मन तो नहीं था पर°इश्क की दुकान देख आया हूँ।।
मेरी मोहब्बत का सूरज तो°अब भी सुबह कर रहा है।
पर दिल ने कहा तो°तेरी बेवफाई की शाम देख आया हूँ।।

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29 JAN AT 15:11

जिंदगी।
गुमराह करती है बहुत।।
मंजिल एक है°पर।
राह रहती है बहुत।।
सब को कहानी पता है मेरी°फिर भी।
अफवाह रहती है बहुत।।
और°मदद के लिए हाथ।
आगे नहीं बढ़ता°किसी का।
पर°सलाह रहती है बहुत।।

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21 JAN AT 16:40

हाथों में है जिनके°धनुष-बाण।
हृदय में रखते°जिनको हनुमान।।
हर सनातनी के°प्रभु है जो।
वो है हमारे°मर्यादा पुरुषोत्तम राम।।

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21 JAN AT 0:03

खर्च किया°खुद को इतना।
अब तो बस°चंद सिक्कों सा बचा हूँ।।
और बँट चुका हूँ मैं°ताश की गड्डी की तरह।
अंत में बस°बेरंग इक्को सा बचा हूँ।।

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