21 JUN 2018 AT 23:19

कभी अच्छा, कभी खराब लिखता हूँ
कभी सवाल करता हूँ, कभी जवाब लिखता हूँ
उम्मीद होती है मुझसे हक़ीक़त लिखने की
और मैं आदतन ख़्वाब लिखता हूँ
सोचता हूँ तुमको लिखूँ, तुम्ही को गाउँ
जो वक़्त मिले तो तुम्हें भी सुनाऊँ

ख्यालों को सलीके से घेर लूँ
टूटे फूटे अल्फ़ाज़ों को कागज़ पर बिखेर दूँ
लाऊं उनमें चटखारे वाला स्वाद
जब तरतीबी से उन पर तुम्हारा नाम फेर दूँ
सोचता हूँ तुमको लिखूँ, तुम्ही को गाउँ
जो वक़्त मिले तो तुम्हें भी सुनाऊँ

कुछ ख्यालों से मगर थक चुका हूँ
अनजाने में सब बक चुका हूँ
अब और खुद को कितना सताऊं
मगर ये सब बताऊँ तो किसे बताऊँ
सोचता हूँ तुमको लिखूँ, तुम्ही को गाउँ
जो वक़्त मिले तो तुम्हें भी सुनाऊँ

- Piyush