20 JUL 2018 AT 23:21

कारवाँ बनता गया, बिगड़ता गया
और सफर अपनी ज़िद्द पर अड़ता गया
थी कोशिशें ही बस में मेरी
मैं कायनात से लड़ता गया
अब इसमें कभी हारते कभी जीतते गए
सफर चलता रहा, दिन बीतते गए

सफर क्या था जी पूरा तूफान था
और मैं एक अदना सा इंसान था
इस तूफान में मैं चलता कैसे
पर क्या करूँ, उगता सूरज हूँ, तो ढलता कैसे
आंधी तूफान आये और रीतते गए
सफर चलता रहा, दिन बीतते गए

ये सफर किसी की निशानी है शायद
ये बचपना है या जवानी है शायद
मिला था राह में एक खूबसूरत हमसफर
ये उसी की कहानी है शायद
सफर में नित नई बात सीखते गए
सफर चलता रहा, दिन बीतते गए

- Piyush