Pawan Mayal   (पवन)
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Joined 23 May 2018


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25 DEC 2022 AT 14:03

मेरे अजीज, मेरे पास बैठ, बात तो कर,
उम्र तो गुजर जाएगी, तू इस शाम को रात तो कर।

ये दिल लाश है धड़कता ही नहीं है मिरा,
ज़रा फिर से लौट आ, कोई नया हादसात तो कर।

इतना सन्नाटा है क्यों है इस शहर में,
चल, झांक दे खिड़की से,कोई हसीन वारदात तो कर।

हम थक गए लड़कर खुदा से, इस जहां से,
वो छोड़,तू कभी मेरे लिए खुदसे वकालात तो कर।


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23 DEC 2022 AT 22:56

इक मुद्दत से खाली सी जगह है सीने में,
सोचता हूं किसी को वो खाली जगह कैसे दी जाए।

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31 JAN 2021 AT 15:57

तू ही बता बंदे,
तेरी सरहदें कहां तक जाती है,
गहरी है सोच तेरी,
या तेरी समझ बस तेरी नज़र तक जाती है।

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31 JAN 2021 AT 15:22

मेरे दोस्त,
मेरे लिए प्रार्थना करना,
इस अंधेरी रात में, कहीं खो ना जाऊं,
लोरियों जैसा शोर है, सो ना जाऊं,

पूरे सफर में मुझे,
इंतजार रहेगा उस सुनहरी सुबह का,
जिस दिन हम फिर मिलेंगे,
और उस दिन मैं इंसाफ करूंगा,
उन तमाम वादों के साथ जो मैंने कभी किए थे,
मैं बताऊंगा अपने संघर्षों के बारे में,
बताऊंगा कैसे मैं थक कर भी कैसे नहीं हारा,
मैं रोऊंगा तुम्हारे कंधे पर सिर रख के,
मैं बताऊंगा की किस तरह ,
खुद को संभाले रखा अभी तक,
मैं सुनाऊंगा तमाम किस्से मेरे सफर के,
मैं तुमसे सुनूंगा तुम्हारे जीवन की ,
रोमांचक कथाएं, घटनाऐं जो हुई ,
मेरी अनुप्थिति में,

मैं दिल खोल कर तुमसे बातें करूंगा,
शाम ढलने तक,
और फिर चल दूंगा,
एक और नए सफर पर।

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31 JAN 2021 AT 15:17

शाम ढल रही है दोस्त,
अब मैं विदा लेता हूं,
अभी मुझे जाना होगा,
फिर से लौट आने के लिए,

अभी मुझे अकेले ही ,
एक लंबे सफर पर जाना है,
मेरे जीवन के सबसे मुश्किल ,
सबसे महत्वपूर्ण सफर पर,
ढूंढ़नी है मुझे अपनी राह ,
इस सर्द रात के अंधेरे से हो कर,
ढूंढना है मुझे खुदको,
आने वाली सुबह के ख्यालों में खो कर,

काला घना अंधेरा है,
ना सड़क है ना कोई पगडंडी,
बस दूर क्षितिज में ,
दिखाई देता है दूसरा छोर,
वह छोर जिसकी कल्पना,
बचपन से करने लगते है,
और मुझे अपना रस्ता खुद बनाना होगा,
संघर्ष की इंटो और पसीने कि सीमेंट से,

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19 JAN 2021 AT 17:42

ये शायर बदनाम क्यूं होते है,
हसीनाएं दिल क्यों तोड़ जाती है,
कुछ रस्ते ख़त्म क्यों हो जाते हैं,
ज़िन्दगी सब पीछे क्यों छोड़ जाती है।

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29 DEC 2020 AT 14:47

इन गलियों में महका हूं खुशबू की तरह,
इक दो दिन कि बात है,फिर हवा हो जाऊंगा।

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29 DEC 2020 AT 14:38

मुद्दतों बाद वो शख्स सामने नज़र जब आता है,
लगता है ज़िन्दगी का बोझ उतर गया हो जैसे कोई।

आदतन परेशान हूं यूं तो, पर वो जब हाल पूछता है,
लगता है, हर नासूर, हर जख्म भर गया हो जैसे कोई।

उम्रों का साथ कहां मुमकिन,पर जब उसके रूबरू होता हूं,
कोई भटकता आवारा मुसाफ़िर लौट आया हो घर जैसे कोई।


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2 DEC 2020 AT 13:24

पर मैं झांक तो सकता हूं,
मैं अनुमान लगा सकता हूं
कि सामने वाले ने कारणवश
कितने झूठ बोले होंगे,
और जब मैं पकड़ लेता हूं
किसी को रंगे हाथों,
मैं डर जाता हूं,
फिर मुझे अपने अक्श से डर लगता है ।

ये दुनिया इसी तरह चलती है,
झूठ दुनिया का सबसे बड़ा यथार्थ है,
झूठ बचाए रखता है,
आपके अपने कृत्यों की सजाओं से,
आपको सच के कड़वे घूंट पीने से,
देता है आपको वहमों का मीठा जहर
जो भर देता है आपकी चेतना में
अस्वीकृति जो आपको
प्राशचित के बाद के
पुनर्जन्म की ओर जाने नहीं देती ।

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2 DEC 2020 AT 13:21

लंबे समय से मैं ,
चकित होता आया हूं,
लोग किस तरह अपने
झूठों को सार्वजनिक करते है,
और सच को दबा देते हैं,
मजबूरियों, कारणों और
समय के अन्न्याय के नाम से।

पर मैं झांक सकता हूं,
जब वो किसी
मन घडन्त कहानी के जरिए,
खुद के सही ठहराने के
अथक प्रयास करते हैं ,
जब वो नाटक करते हैं,
हितेषी होने का , पर
वो होते नहीं है,
सामने वाला यह जान लेता है यूं तो,
वो भांडा फोड़ सकता है,
पर ये होता नहीं है।

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