Parvez   (परवेज़)
25 Followers · 22 Following

read more
Joined 16 August 2020


read more
Joined 16 August 2020
29 APR AT 19:40

बह्र :- 12122-12122-12122-12122

ज़रा ठहर जा समाँ-ए-फ़ुर्सत गमों से थोड़ा हिसाब कर लूँ
चमक रहा है जो ख़ूब चहरा मिन-अश्क़ थोड़ा ख़राब कर लूँ

अभी जो बाक़ी है ख़ूँ बदन में ज़रा सी साँसे जो चल रहीं हैं
लुटा के उसकी ही बस्तियों में ज़रा सा कार-ए-सवाब कर लूँ

-


29 APR AT 0:10

बह्र :- 2122-1212-22

सोग पहुँचा हमारे हुजरे तक
हो गया था रुसूख़ अपनों से

-


28 APR AT 19:20

बह्र :- 22 22 22 22 22 22 22

उसको देखा तो जाना के तबस्सुम क्या होता है
उसको सुनकर ही जाना के तरन्नुम क्या होता है

उसका लहजा उसकी बातें दिल में घर करतीं हैं
नज़रों से ही सब कह दे वो तकल्लुम क्या होता है?

-


23 APR AT 18:47

Paid Content

-


21 APR AT 21:29

भरी महफ़िल में जो चहरा खिला है
वो क्यों ऊपर ही से बस ख़ुशनुमा है

न जाने कौन सा उसको गिला है
जो इतनी देर तक मुझसे खफ़ा है

रखे उसको सलामत हर घड़ी रब
ग़रज़ क्या है? अगर वो बेवफ़ा है

शिकायत तू मिरी किस से करेगा ?
जो तेरा है वही मेरा ख़ुदा है

नहीं है हाल भी वैसा हमारा
बदन मरज़ों से अब जकड़ा हुआ है

मेरी माँ से यही कहते थे डैडी
मेरा बेटा मुझी पर ही गया है
न मानेगा कभी ये हार ख़ुद से
तभी "परवेज़" नाम इसका रखा है
~परवेज़












-


11 APR AT 19:58

बह्र :- 11212-11212-11212-11212

कोई उज्ब दे, न ग़ुरूर दे, मुझे सिर्फ़ इतना नुज़ूर दे
कभी दिल न मुझसे दुखे कोई मुझे ऐसा लहजा ज़रूर दे

मुझे रब तू इतना नवाज़ दे कोई ज़ोम मुझ में न हो कभी
तिरी नेक रह पे चलूँ सदा मुझे बस तू इतना श'ऊर दे

मिरा जिस्म खाक़-ए-वतन बने, मिरी जाँ वतन पे निसार हो
मुझे मौत भी न डरा सके मुझे बस तू इतना फ़ितूर दे

मेरा इस तरह का दयार हो जहाँ कोई छोटा-बड़ा न हो
मेरा काम हक़ की हो बानगी सभी नेक शग़्ल को पूर दे

कभी मुश्किलें हों हयात में तेरा नाम मेरे लबों पे हो
सभी मुश्किलों को हरा सकूँ मिरे हौसलों में वो तूर दे
~परवेज़



















-


8 APR AT 16:12

बह्र :- 1222-1222-1222-1222

कहाँ कब कौन जाएगा यहीं से ही तो तय होगा
कि दोज़ख़ और जन्नत की यही दुन्या तो बर्ज़ख़ है

-


27 MAR AT 19:46

बह्र :- 1212-1122-1212-22/112
फ़लक को देना पड़ा उसको रौशनी का ख़िताब
निज़ाम-ए-शम्स-ओ-क़मर ने यूँ पैरवी की थी

-


15 MAR AT 23:49

बह्र : 212-212-212-212 [ग़ज़ल]
झूठी हमदर्दियाँ कर के क्या फ़ायदा
जब निभा ना सको दिल से तुम राब्ता

है इरादा अगर करना बे-हुरमती
ख़त्म कर दो इसी वक़्त तुम राब्ता

दिल में रखते हो कुछ और दिखाते हो कुछ
ऐसी झूठी रफ़ाक़त से क्या फ़ायदा

गर मिलेंगे नए ग़म तो सह लूँगा मैं
मुझको बख़्शा है रब ने बहुत हौसला

ज़ख़्म भरते हैं यूँ दिल के "परवेज़" अब
ग़ैब से आती है चल के दस्ते-शिफ़ा
~परवेज़

-


8 MAR AT 23:45

बह्र : 1222-1222-1222-1222
ख़ुशी बस तुम से है मेरी तुम्हीं दिल की ज़रूरत हो
है तुमसे रब्त इस दिल का तुम्हीं सच्ची अक़ीदत हो

अगर ढूँडू ज़माने में उख़ुव्वत और मोहब्बत मैं
तो पाता हूँ तुम्हें ही "माँ" तुम्हीं सच्ची अलामत हो

तुम्हारे नाम से ही दिल मेरा अब शाद होता है
मैं ख़ुश रहता हूँ जो इतना तुम्हीं इसकी वज़ाहत हो

हो दुन्या में बहुत आ'ला , मेरा मुश्किल कुशा हो तुम
अंधेरा दूर हो जिससे तुम ऐसी ही बराक़त हो

असर है ये दुआओं का जो रौशन हो अभी "परवेज़"
अगर कुछ हो तो बस माँ की दुआओं की बदौलत हो
-परवेज़

-


Fetching Parvez Quotes