किसी ने नहीं कहाँ था कि तुम आवाजाही करो दिल मे जो भी है , आँखो से साफ नज़र आता था कोरे कागज़ो से भी तो पूछ कर मालुम करो जो इंतज़ार मे जल गए , चेहरा उनका भी हसीन नज़र आता था
नौबत ऐसी क्यूँ नहीं आती कि हम ही ख़त्म हो जाये और आती भी है तो जान निकल ही जाती है वो जहाँ सिर्फ दिल लगे दिमाग ना लगने पर.. वहाँ कोई सिर्फ दिमाग लगाए तो गुस्सा आती है
हमें भी पता है और ये जग-जाहिर है भला किसे इम्तेहान से गुजरना पड़ा है हमेशा वक़्त की मार सहनी पडती है और फिर दिल को भी उसके बिना रहना पड़ा है . काश के कभी निपट जाते सारे काम ऐसे ही जैसे एक बार मे वो जुड़ा बना लेती है उसे बे-परवाह भी छोड़कर परवाह हुई है उससे जुदाई दिल को झक-झोर देती है . मुझे इन फ़ासलो से परे भी उसका इंतज़ार है वो जिसका इंतज़ार घड़ी को भी रहता है वो मेरे सामने नहीं होता मगर.. पता नहीं क्यूँ.. वही जैसे हर पल मेरे सामने रहता है
मेरी अपार चाहत एक अंजाम तक पोहच भी जाये मगर उस इंसान का क्या जिसे मोहब्बत ना रास आये अगर नसीब मे एहतेराम लिखा होगा तो मिलेगा फिर वो अमीर ही क्या जो एक बदन का फ़कीर बन जाये
बुरा कह दे मुझे तू , मगर याद रख राम या अन्य कोई .. सीता का मै था अपहरड़ी मगर इरादा मेरा ना अन्य कोई.. मै ज्ञानी अवश्य , चरित्रहीन सदा , मगर ज़बरदस्ती ना आती थी मुझसे शर्मनाक कलयुग होगा , अन्य ना मिलेगा जैसा रावण कोई..