खड़े हैं लोग याँ बेताब देखने के लिए
जहान-ए-इश्क़ तिरा ताब देखने के लिए।
वो इक नज़र के जिसे देख मैं हुआ ताज़ा
उसी नज़र को है आदाब देखने के लिए।
बिछड़ते वक़्त कहा मैंने कुछ हसीं दे तो
"मुझे वो दे गया इक ख़्वाब देखने के लिए।"
तेरी गली से निकाले हुए ये पूछते हैं
किधर को जाएँगे महताब देखने के लिए।
उजड़ते शहर की ख़ामोशी कह रही है की
जिगर-ख़ूँ चाहिए सैलाब देखने के लिए।
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