Nilesh Barai   (निलेश बरई (नवाज़िश))
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1.Nation First 🇮🇳🇮🇳
2. सुख़न
Joined 22 July 2018


1.Nation First 🇮🇳🇮🇳
2. सुख़न
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16 SEP 2023 AT 23:50

जाग उठता हूँ नींद से अक्सर
एक आसेब का है डर मुझे में।

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10 NOV 2022 AT 23:08

काम मुश्किल है फिर भी करना है
अपने साए में रंग भरना है।

वो मिरे आँसुओं से झरता था
आपके वाँ जो एक झरना है।

ऐसे दरिया का ‌हूँ मैं रेत महल
जिसको बस टूट कर बिखरना है।

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19 APR 2022 AT 18:14

उसने छेड़ी है आसमान की बात
क़ैद पिंजरे में जिसको करना है।

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17 APR 2022 AT 8:14

वो मिरे आँसुओं से झरता था
आपके वाँ जो एक झरना है।

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22 OCT 2021 AT 19:50

ख़्वाब में ऐसे डर गया हूँ मैं
तेरे अंदर ही मर गया हूँ मैं।

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27 SEP 2021 AT 21:22

है "नवाज़िश" का वो चराग़-ए-गोर
जिस तरफ मैं हवा नहीं करता।

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31 AUG 2021 AT 13:27

दिल से अब मशवरा नहीं करता
जा मैं ये फैसला नहीं करता।

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28 AUG 2021 AT 22:42

खड़े हैं लोग याँ बेताब देखने के लिए
जहान-ए-इश्क़ तिरा ताब देखने के लिए।

वो इक नज़र के जिसे देख मैं हुआ ताज़ा
उसी नज़र को है आदाब देखने के लिए।

बिछड़ते वक़्त कहा मैंने कुछ हसीं दे तो
"मुझे वो दे गया इक ख़्वाब देखने के लिए।"

तेरी गली से निकाले हुए ये पूछते हैं
किधर को जाएँगे महताब देखने के लिए।

उजड़ते शहर की ख़ामोशी कह रही है की
जिगर-ख़ूँ चाहिए सैलाब देखने के लिए।

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6 AUG 2021 AT 20:44

मेरा वादा सच्चा था
लौट के आना पक्का था।

इतनी जल्दी क्यों तोड़ा
दिल तो अभी तक बच्चा था।

तीर तो तेरे हल्के थें
जिस्म मेरा ही कच्चा था।

तू ही ख़रीदेगा मुझको
मैं ये सोच के सस्ता था।

दूर हुए क्यों सब मुझसे
मैं तो सच का हिस्सा था।

ले जाता था पीछे ही
जाने कैसा रस्ता था।

फूल के कमरे में भी एक
ख़ार भरा गुल-दस्ता था।

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30 JUN 2021 AT 17:04

मुश्किल से मिलता हूँ "नवाज़िश"
रेगिस्तान का दरिया हूँ मैं।

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