बंद पिंजरे की पंछी हुँ मैं।
खुला आसमान दिखाई तो देता है ,
पर उड़ने की आज़ादी नही।
सूरज दिखाई तो देता है ,
पर उसकी गर्मी महसूस कर ने की ,
आज़ादी नही।
बारिश कीे बूंदे तो नज़र आती है
पर उनमें भीगने की आज़ादी नही।
ज़िंदा हुँ सब को दिखाई देती है,
पर जीने की आज़ादी नही।
बंद पिंजरे की पंछी हूँ मैं।
......नीतू
- Nabanita Ganguly