रण में ऐसा खिलूँगा मैं , दरिया में थर-थर करना होगा । बन बाज़ ऐसा उड़ूँगा मैं , आसमाँ में कंपन करना होगा ।। अध्याय ऐसा लिखूँगा मैं , विज्ञान में विचार करना होगा । नेतृत्व ऐसा करूँगा मैं , लोकतंत्र को भी झुकना होगा ।।
यूं कस के लिपट जाना मेरे बदन से की मैं डगमगाता बहुत हूं । यूं खुद खोज लेना मुझे अंधेरे में की मैं डरता बहुत हूं । मालूम है ना सीने में अंगार जलाए , मैं मुस्कुराता बहुत हूं ।।
सिमट जाए जो काया मेरी राख़ में , महाराणा बन कर आऊँगा डूब जाए जो लहू मेरा सागर में , पृथ्वीराज बन कर आऊँगा लिपट जाए जो संघर्ष मेरा युद्ध में , शिवाज़ी बन कर आऊँगा जल जाए जो ज्योति मेरी नाथ चरण में , इतिहास नया दोहराऊंगा
सूरत को देख हुआ मै ऐसा लाल की इश्क़ में रंग गए सारे अंदाज़ । लिबास में उसके डूबा ऐसा गुलाल की वसंत में भीग रही मुमताज़ । रोम के खुशबू से हुआ ऐसा बेहाल की चढ़ गया दिल में नशा है आज । कुदरत ने बनाया तुझे ऐसा कमाल की हुस्न पर लिखता रहे कविराज ।।
मैं आस्मा में क्या तलाशा मुझे चाँद ग़ज़ब मिल गया मैं सफ़र में क्याँ चला मुझे दिलगीर अलग़ दिख गया । मैं आँखों में क्या निहारा मुझे प्रीत से मिलन हो गया मैं ज़ुल्फ़ो में क्या उलझा मुझे शहर क़बूल हों गया । मैं कागज़ में क्या खुरेचा मुझे मोह बवाल हो गया मैं स्वप्न में क्या पुकारा मुझे समीक्षा स्वयं हो गया ॥
जो मैं लहरों से बग़ावत कर जाऊ तो समंदर सा छिपा लेना रे बाबा । जो मैं चट्टानों से रेत हो जाऊं तो मिट्टी सा समेट लेना रे बाबा । जो मैं हवा से तूफ़ान हो जाऊं तो मोम सा पिघला लेना रे बाबा । जो मैं ख़ामोशी से ख़्वाब हों जाऊ तो माँ से राज छुपा लेना रे बाबा ।।
जो तू ओढ़ क़फ़न मेरे नाम का मैं अंत भी अनंत कर दू । जो तू रह तन्हा देख चाँद को मैं आसमां भी राख़ कर दू । जो तू गुज़र जहां मेरे मोड़ से मैं इश्क़ भी निलाम कर दू । जो तू बिख़र जा इन लबों पे मैं गीत भी ग़ज़ल कर दू ।।
माँ की आँचल में लिपटा मैं झख़्म नरम कर रहा हूं । गांव की मिट्टी में जन्मा मैं नाम अमर कर रहा हूं । इश्क़ का दाग़ नया नया सा मैं लब्जों से हद पार कर रहा हूं । शिव शंकर का जग दीवाना मैं काल भस्म कर रहा हूं ।।
थोड़े से पुनः कमाऊ थोड़ी गिनती हैं पापों की (१) पर कोई फरक ना पड़ता बोलू बस जय बाबा की (२) साफ़ दिल हैं रंगीला पर गंदी नज़र ना रखता (३) मरता बस यारा पे मैं ग़द्दारों की क़दर ना करता (४)