मोहित प्रेम पुंडीर  
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फिर एक दिन रास्ते में भूल के यूं अजनबी बने
एक दौर में जब दूर शहर के अनजान लोग मिले

फर्क सिर्फ दूरियों का था मौन से इस सफर में
उसको छाव में चलाकर हम खुद धूप में चले

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नकाब चेहरे पर था, जो मेरे उतर गया
जब एक दिन मैं, आईने से भीड़ गया

खुद का वजूद अब, सपना सा था
टुटा था जो खवाब, अपना सा था

बेमतलब सा था ख़ुशी का हर लम्हा
जो मेरा भी था, वो भी अब बेगाना था

बस मौत थी की, अब आती ना थी
बाकी जो भी आता, अब भाता ना था

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खुदा भी गर जिस्म में ढल गया होता
इश्क में वो भी एक दिन तड़फ गया होता

चाहे गर होती उसकी मोहब्बत पाक ए वफ़ा
सर्द रातो में जग जग कर वो भी रोया होता

गर हीर होती उसकी दुसरे मजहब से
तो मिलने पर उसको भी ज़माने की पाबंदियां होती

यु ही रुक्सत हो जाते वो भी ज़माने से
जिस दिन उसके भी महबूब की डोली उठी होती

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शब्द भी मौन है,
नयन भी मद्धम है
अर्धरात्रि पहर है
स्वपन सरीखा इंतजार,
अब तो आ जाओ प्रियतमा,
उदास है दिल
बोझिल सा मन है
जिन्दगी मेरी सवार जाओ
अब तो आ जाओ प्रियतमा,
चांदनी जब करीब है
बेचैन से पल है
ये दूरी भी अजीब है
साथ निभाने को
अब तो आ जाओ प्रियतमा,

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आज फिर दुश्मनो का सलाम आया है
दोस्ती करने का पैगाम आया है
बीच राह में छोड़ गए थे जो हमको
उन्होंने फिर साथ चलने का वादा निभाया  है

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जब से देखा है उन्हें, कोई सूरत अब दिखती नही
उनको देखे बिना अब मृग-तृष्णा सी मिटती नहीं

कहने वाले उनको देखकर, क्या क्या नहीं कहते
हम तो कहते है, की आज तक उनसा कोई देखा नहीं

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कल चाँद तारो से रौशनी चुरा कर लाया था
तब जाके दिल के आईने में तुम को सजा पाया था

हुस्न के मुक्कदस है वो, जिनके दीवाने है हम
बरशो बाद ज़माने में कोई महताब ऐसा आया है

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लगता है मेरे अल्फाज़ भी नाराज़ है मुझसे
मैं वो लिख नहीं पा रहा,
जो महसूस कर रहा हूँ,

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तेरे ख्वाब, तेरे खयाल तेरी वो प्यारी भरी बातें,
बाद तेरे मेरे पास वक़्त गुजारने को अफसाने बहुत है

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बाद मुद्दत के एक हसीन ख्वाब देखा है
भीगता हुआ बारिश में आफताब देखा है
चांद सा वो नूर था और चांदनी सा था बदन
एक नज़र देख के फिर बेहिसाब देखा है

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