शिक़वे पहले बहुत है ज़िंदगी तुझसे, एक ग़िला और सही…. ख़ुमारी में हूँ अपने ही ख़यालों के, दिल तों टूटा है यूँ कई दफ़े, एक बार और सही… फ़र्क़ नहीं पड़ता था हज़ार चीज़ों से, एक से और सही…
ज़ो देना चाहती है ग़ुल्दस्ता फूलो का अगर, तो देदे आज ही ला कर, शिकायत मत करना अगर... जो कल को कहीं फ़ुल तेरे रह जाए भीड़ में दबकर, भीड़ तो रहेगी कल मेरी मय्यत पर...!!