सुनो,कभी ऐसा हो काश कभी ऐसा हो। सुनो कभी ऐसा हो मैं हो जाऊं नाराज़ बेहद और तुम लेकर हाथों में हाथ, घोलती कानों में शहद कहो "अच्छा माफ़ कर दो ना जान गलती कर बैठी नादान"। फिर कर आँखों का जादू, करो मुस्कुराहट से काबू, महसूस करा दो मोहब्बत को सुनो, कभी ऐसा हो, काश कभी ऐसा हो ❤️
हम जो ये अपनी उम्र गंवा के बैठे हैं थोड़ी छाँव थोड़ी धूप कमा के बैठे हैं वो जो जज़्बातों की क़दर करते हैं कोई बताए हमें भी,वो कहाँ पे बैठे हैं सोच ज़मीन से भी नीचे जा पहुंची है, और दिमाग लोगों के आसमां पे बैठे हैं एक दिन आंसुओं में ही डूब जाते हैं वो कुछ लोग जो दिल लगा के बैठे हैं
चलो ये वहम भी अच्छा है, दिल ही साथी सच्चा है। मीठा होगा दर्द एक दिन, पर अभी तलक तो कच्चा है। रोकर वही चाँद माँगता है, मेरे भीतर जो एक बच्चा है। उम्मीदों पर तैरती ज़िन्दगी, और ये घड़ा भी कच्चा है। मेरी आँखों पे गुमान का पर्दा, तल्ख़ हक़ीक़त से तो अच्छा है।
मैं इस ग़म की तादाद से बिखर जाता उम्मीदों ने ज़िंदा रखा,वरना मर जाता राह दिलकश थी,मुझे चलते रहना था मैं अगर जो रुकता तो सफ़र मर जाता सूरज थक के डूबता,चाँद छुप जाता, और मैं भी तो लौट के अपने घर जाता मेरा हर ख्याल तेरा ही प्यासा है शायद गर तुझ तक ना जाता तो किधर जाता
कोई बात दिमाग़ में उलझ जाती है ऐसे कि ज़िन्दगी अक्सर उलझ जाती है जैसे तेरे लफ्ज़ोँ के जाल से निकल नहीं पाता तू,कई मर्तबा मुझसे उलझ जाती है ऐसे कुछ भी चाहूंगा तू हर चाह से बढ़कर, चाहतें,तेरी चाहत से उलझ जाती है ऐसे
चल बता मेरे पास, मेरा रहा क्या, अब,सब तेरा हुआ दिल-विल,जिस्म-विस्म, रूह तक भी तेरी, एक रिश्ता सब ले गया, तेरा-मेरा,चैन-ओ-सुकून,गुरुर और भरम और मैं, तुम्हारी ही रहूंगी , ज़ब तक रहेगा मुझमें दम, तो चल बता मेरे पास, मेरा रहा क्या, मेरा रहा क्या, अब,सब तेरा हुआ दिल-विल,जिस्म-विस्म।
मैं,तेरे रोज बदल जाने से तंग आ चुका हूँ अपने चीखने,चिल्लाने से तंग आ चुका हूँ एक रिश्ते के लिए करना,ख़ुदी का क़त्ल, इस तरह रिश्ते निभाने से तंग आ चुका हूँ जिसने अपना मयार क़ायम रखा,सलाम है ख़ुद के नीचे गिर जाने से तंग आ चुका हूँ, एक दिन बदलेंगे हालात और ये ज़िन्दगी भरम में जीने,मर जाने से तंग आ चुका हूँ
दूरियां के दरख़्त अब बढ़कर जंगल हो चले हैं, भीतर होंगे गुल,पँछी,नदी झरने। पर इन से गुज़र कर कभी, मिल पाऊंगा तुमसे हमेशा के लिए, दिल अब इस बात पे लगा है डरने।। और मैं हवाओं से दरख़्वास्त करता हूँ कि इश्क़ के लिए,राह बनाए, एक राह,बस एक रास्ता मिले मुझे, जो तुम तक मुझे ले जाए।
तेरा,क्या गज़ब प्यार है हर कदम पर तकरार है अल्फ़ाज़ बहुत मीठे हैं पर उनमें भी अंगार है तेरी ज़िद पे बहुत झुका, अब,मुझे साफ़ इन्कार है तुम्हें तो छोड़के उड़ना है, कि तू हवाओं पे सवार है अब नाव उसके सहारे बेशक बीच मंझधार है।
___________औरत _____________ वो अपनी ज़ोर ज़ोर से वफ़ाएं बता रहा था मुझ इश्क़ की अंधी को आईना दिखा रहा था जहाँ मेरा वज़ूद भी ख़त्म हो जाता था वो बा वफ़ा मुझे इतना नीचा दिखा रहा था मैं इश्क़ में डूब के रो रही थी जार जार और वो सरे आम मुझ पर चिल्ला रहा था नक्स ज़ुल्म के मेरी रूह पे खरोंच कर, पता नहीं क्या बना रहा था,क्या मिटा रहा था मिट कर भी महकाना है घर आँगन मुझे, मेरी माँ ने कहा था,मुझे बड़ा याद आ रहा था