आज फिर टूटकर ज़िन्दगी से रूठा हूँ,गैरों के नहीं, अपनों के हाथों लुटा हूँ। - Kavi SAM
आज फिर टूटकर ज़िन्दगी से रूठा हूँ,गैरों के नहीं, अपनों के हाथों लुटा हूँ।
- Kavi SAM