कभी हुस्न की बाहों में आके सो जाया करो,
कभी ख़्वाब की राहों में आके सो जाया करो,
होती है कितनी शीतल, तारों भरी रात ये,
तुम दिल से उठती इन आहों को छोड़कर,
कभी दिल की चाहों में आके सो जाया करो।
बुलाती है जो ये रात तुमको मयख़ाने,
झिझकते क्यूँ हो इतना, चले जाया करो,
नशा है तो जिंदगी है, जिंदा रहोगे तुम,
देखना क्या छलकते ज़ाम, पी जाया करो,
कभी दिल की चाहों में आके सो जाया करो।
होंगे रिंद सभी, हमसुखन भी, हम जुबां भी,
अजनबी चेहरे पहने, जानीमानी दास्तां सभी,
होगी तल्ख-ए-ताबीर-ओ-तसव्वुर-ए-ख़्वाब सभी की,
थोड़ी उनकी सुना करो, कुछ असार तुम सुनाया करो,
कभी दिल की चाहों में आके सो जाया करो।
इस रात के उस पार भी ना कोई ख़ज़ाना मिलेगा,
फ़िर वही दिन का दरिया, और एक किनारा मिलेगा,
आके किनारे तक फ़िर लौट जाना, महज़ यही जीवन है,
पर जब आओ किनारे, वक़्त की रेत पे निशाँ छोड़ जाया करो,
कभी दिल की चाहों में आके सो जाया करो।
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