जिन्दगी में कुछ ना भी हो तो काम चलता है,
गर, घर मे माँ ना हो तो घर बड़ा ही खलता है,
बच्चा गोद से उतर चलने दौड़ने तक लगता है,
फिर भी, माँ को बच्चा, बच्चा ही लगता है,
बचपन से लेकर जवानी तक तो पलता है,
फिर एक दिन बेटा भी कमाने निकलता है,
सहारा देने वाले भी सहारों पर आ जाते है,
वक़्त भी रफ्ता-रफ्ता इस तरह बदलता है,
ताउम्र निःस्वार्थ जिन्दगी लुटायी हो जिसने,
उन बुजुर्गों का जोड़ा कुछ उम्मीदें तो रखता है,
कैसे माँ ने माँ का बाप ने निभाया बाप का फर्ज़,
अक़्सर ये बात हर कोई बड़ी देर से समझता है,
खुशियों से भरे घर मे जब सन्नाटा बसर करता है,
सच कहूँ, दिल टूट जाता है, मन बड़ा तरसता है,
ये तीज-त्यौहारों पर सुनसान पड़ा घर देखकर,
जतिन, उस दिन हर कोई बहुत ज्यादा तड़पता है।
जतिन..✍️
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