24 APR 2017 AT 18:25

पका गेंहूँ, खरे सोने सी चमक उसकी
बंद मुट्ठी में, भरी हुई खनक उसकी
पिस जाती है ज़िंदगी की ज़रूरतों के बीच।
सोने सा रंग, दूधिया हो चला
थोड़ा और पका, फिर ख़त्म !!!

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