पका गेंहूँ, खरे सोने सी चमक उसकी बंद मुट्ठी में, भरी हुई खनक उसकीपिस जाती है ज़िंदगी की ज़रूरतों के बीच।सोने सा रंग, दूधिया हो चला थोड़ा और पका, फिर ख़त्म !!! -
पका गेंहूँ, खरे सोने सी चमक उसकी बंद मुट्ठी में, भरी हुई खनक उसकीपिस जाती है ज़िंदगी की ज़रूरतों के बीच।सोने सा रंग, दूधिया हो चला थोड़ा और पका, फिर ख़त्म !!!
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