चटक धूप से भरी दोपहरीकितना साफ़ तुम्हारा रंगजी चाहे बस तुम्हें निहारुँरहे शेष न दूजा रंग । -
चटक धूप से भरी दोपहरीकितना साफ़ तुम्हारा रंगजी चाहे बस तुम्हें निहारुँरहे शेष न दूजा रंग ।
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