दिल्ली मेरे देश की राजधानी आज की रात,
सोचती एक बात कि अख़िर क्या हुई मुझे,
आँखिर कैसे बिगड़ी मेरी हालत ।
कोई आपस में लड़ा था तो लड़ता मेरा ये हाल क्यूँ किया,
कहीं मुझे नाले में मारकर फेंक दिया तो कहीं पत्थरों से हमला किया।
मैं तो इस दंगे की भागीदार न था,
फिर क्या भिड़ में कोई एक भी आवाज़ ईमानदार न थी ?
कोई तो कहता कि मैं बेगुनाह हूँ ,
भला मुझे क्यूँ कहीं गोली मार दिया, कहीं चाकुओं से गोद दिया।
मैं तो अपने घर के ज़रूरत का समान लेने गयी थी,
कुछ बुज़ुर्गों, बच्चों, की जीने की अरमान लेने गयी थी।
आख़िर मेरी ख़ता क्या थी, क्यूँ मुझपे टूट पड़े हिंदू-मुस्लिम साथ।
दिल्ली मेरे देश की राजधानी आज की रात,
सोचती एक बात कि अख़िर क्या हुई मुझे,
आँखिर कैसे बिगड़ी मेरी हालत ।
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