किसको जा कर के अपना हाल-ए-दिल सुनाएँगे,
दर्द ग़ज़लों में उतारेंगे गुनगुनाएँगे।
जज़्ब हो जाएँगे अपने ही दो किनारों में,
हम वो दरिया हैं जो सागर तलक न जाएँगे।
तोड़ कर भर ले इन्हें अपनी जेब के अंदर,
पल जो गुज़रे ये तो फिर लौट कर न आएँगे।
एक दूजे के हैं जो ख़ून के प्यासे हम तुम,
अगली नस्लों को भला कैसे मुँह दिखाएँगे।
किसलिए दे रहा है तर्क़-ए-तआल्लुक़ का जवाज़,
हम तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहेंगे।
दोस्त जो आज हमको जान से अज़ीज़ हैं वो,
चंद हफ़्तों के बाद याद तक न आएँगे।
बैठना बूढ़े दरख़्तों की छाँव में भी कभी,
सैंकड़ों किस्से और कहानियाँ सुनाएँगे।
बस लगा लेना तू गले से एक बार हमें,
चाहे जितने भी हों नाराज़ मान जाएँगे।
उनकी नज़रें टिकी हैं मेरी मुस्कुराहट पर,
उनको पाओं के ये छाले नज़र न आएँगे।
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